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मन के हारे हार है मन के जीते जीत का अर्थ- कैसे बने अपने मन के नियंत्रक

दोस्तों प्रतियोगिता आयर प्रतिस्पर्धा के इस दौर में कोई भी उपलब्धि आसान नहीं है | मगर इसका ये मतलब नहीं कि हम सच्चे प्रयास को भी करना छोड़ दें | मन के हारे हार है, मन के जीते जीत का अर्थ ये मुहावरा  सुना ही होगा आपने | अपने लक्ष्य प्राप्ति की राह में लाख मुश्किलें भी आयें मगर हमें हार नहीं माननी चाहिए | मन को कभी कमज़ोर नहीं पड़ने देना चाहिए | दुनिया आपके बारे में चाहे जैसी राय बनाये – आपका मन ही वो अकेला शख्स है जो आपको हौसला दे सकता है | इसलिए अपने मन में विश्वास की लौ को हमेशा जलाये रखे और हर क्षण कुछ न कुछ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करते रहें |

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत का अर्थ

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत का अर्थ

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत का अर्थ है कि आप अपनी इच्छा शक्ति के माध्यम से कुछ भी हासिल कर सकते हैं | मन के हारे मतलब जो व्यक्ति अपने मन में हार मान लेता है उसे हार का ही सामना करना पड़ता है| किसी भी कठिन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आप का दृढ़ निश्चयी होना आवश्यक है

मन का विश्वास कमज़ोर हो न

दुनिया की कोई बभी उपलब्धि के लक्ष्य को पहले मन में ठाने| आप प्रबल दावेदार है और आप अपनी क्षमता का पूरी तरह उपयोग करेंगे ऐसा विश्वास और संकल्प अपने मन में हमेशा रखे | याद रखिये आप का सबसे अच्छा और भरोसेमंद दोस्त आपका मन है या आप खुद ही हैं |

संयम रखे और दृढ़ निश्चय बनाये रखे

हालत विपरीत हो या अनुकूल , अपने ऊपर संयम बनाये रखे | संयम से ही आप अपने आस पास के नकारात्मक विचारों को दूर कर सकते हैं | इसलिए कैसी भी परिस्थिति हो संयम न खोये | कहा जाता है कि रात और दिन प्रकृति का चक्र है | हो सकता है कि अभी आप अपनी जिंदगी के सबसे स्याह वक़्त या बुरे वक़्त को देख रहे हों मगर मेरा यकीन कीजिये | सब कुछ बदलता है | अपने निश्चय को दृढ रखे और ख़ामोशी से अपना काम करते रहें | आपको खुद महसूस होने लगेगा कि सच में वो लम्बी सी रात कटने ही वाली है |

याद रखिये हमें हराने वाला हमारा मन ही है और विजय भी हमारा मन ही दिलाता है |

क्या है मन का हारना

आखिर क्या होता है मन का हार जाना- दोस्तों हमारा मस्तिष्क हर क्षण कुछ अच्छा और बुरा सोचता हि रहता है | ये संभव है आप जो करना चाहते हैं मस्तिष्क उसकी सफलता को लेकर तमाम आशंकाएं पैदा करता हो | लेकिन ये याद रखिये कि मस्तिष्क की ये गतिविधि सिर्फ एक कोरी कल्पना है जो  आपको असफल होने के सीधे निष्कर्ष पर पंहुचा दे रहा है और आप उस आशंका को सच मान करने मन को ये निर्देश दे देते हैं कि आप असफल हो गए हैं | यही होता है मन का हारना

मन को काबू में रखिये , उसे आश्वश्त करिए कि सब सही और अच्छा होगा | यकीन करिए हर परिणाम आपके पक्ष में आएगा |  याद रखिये मन के हारे हार है … मन के जीते जीत- 

चलिए हम आपको आज एक कहानी बताते हैं – बाज़ की कहानी

आप  लोगों ने अकसर बाज के बारे में सुना होगा। बाज एक ऐसा पक्षी है जो अपनी नजर व हौसले के लिए जगत में विख्यात  है। लेकिन अगर उसकी जिंदगी को करीब से देखें तो  उसके जीवन में भी एक ऐसा पड़ाव आता है जब उसे अपने जीवन को जीने के लिए कई कठोर फैसले लेने पड़ते हैं। ये फैसला इतना आसान नहीं होता

बाज की औसत उम्र 70 साल की होती है, लेकिन जिंदगी के इस सफ़र को तय करने के लिये उसे अपने जीवनकाल के मध्य में एक मुश्किल फैसला लेना पड़ता है। बाज के  पंजे 40 वर्ष तक सही ढंग से काम करते हैं। 40साल के बाद ये पंजे मुड़ने की वजह से  कमजोर हो जाते हैं और शिकार नहीं पकड़ पाते।

इसकी लंबी और तीखी चोंच भी आगे से मुड़ जाती है। पंख मोटे हो जाने से भारी हो जाते हैं और उसकी छाती से चिपक जाते हैं। इससे उसे उड़ने में बहुत दिक्कत होती है। ऐसे समय में बाज के पास दो ही रास्ते रह जाते हैं- या तो जीवन त्याग दे या फिर बदलाव के लिए एक दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरे जिसका समय 5महीने होता है।

फिर नया जीवन प्राप्त करने के लिए बाज उड़कर एक ऊँची चट्टान पर जाता है और वहाँ घोंसला बना कर वहाँ रहना शुरू कर देता है।

बदलाव की प्रक्रिया के अंतर्गत बाज चट्टान में अपनी चोंच मार-मार कर दर्द की परवाह ना करते हुए तोड़ देता है। उसके बाद अपने पंजों को तोड़ता है। अंत में अपने भारी हो चुके पंखों को भी नोच कर फेंक देता है। अब इस दर्द भरी विधि को पूरा करने के बाद बाज को पुरानी अवस्था में आने के लिए 5 महीने का इंतज़ार करना पड़ता है।

इसके बाद बाज का नया जन्म होता है। जिसके बाद वो एक बार फिर से शिकार कार सकता है, उड़ सकता है और मनचाहा आनंद ले सकता है। आगे के 30 साल उसे इन कष्टों के बाद ही मिलता हैं।

४० वर्षों के बाद बाज़ के पास दो विकल्प हैं पहला ये कि वो मन से हार जाए और असमय होने वाली मृत्यु को स्वीकार कर ले और दूसरा ये कि वो लड़ कर आगे बढ़े |

इसी तरह एक सफल इंसान भी एक बदलाव से ही आगे बढ़ता है। उस बदलाव के कारण उसकी आलोचना होती है, उसे गलत कहा जाता है। लेकिन वो इंसान अपनी मंजिल की और बढ़ जाता है। जिस तरह बाज एकांत में खुद को बदलता है, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता की कोई क्या कहेगा। उसी प्रकार हमें भी एकचित्त होकर ईमानदारी से मेहनत करनी चाहिए और नकारात्मक चीजों से सदा दूर रहना चाहिए।

मन के हारे हार है … मन के जीते जीत

“‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’ यह प्रसिद्ध पंक्ति संत कबीर दास की रचना है। इस दोहे का सार यह है कि हमारी हार-जीत का निर्धारण हमारे मन की स्थिति से होता है। यदि हमारा मन दृढ़ और आत्मविश्वास से भरा हो, तो हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। लेकिन यदि मन पहले ही हार मान ले, तो सफलता प्राप्त करना कठिन हो जाता है।”

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